दुनिया में अब डेटा और इंटरनेट है आधुनिक तेल और शक्ति
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इंटरनेट और डेटा कंट्रोल: भारत अमेरिका और चीन से कहीं पीछे
परिचय
आज की दुनिया सूचना और डेटा पर आधारित है। राष्ट्रों की ताकत अब केवल सैन्य बल या आर्थिक संसाधनों से नहीं, बल्कि उनके डिजिटल आधारभूत ढांचे और इंटरनेट पर नियंत्रण से भी मापी जाती है। अमेरिका और चीन इस दौड़ में आगे हैं, जबकि भारत अब तक अधिकतर उपभोक्ता की भूमिका में है।
इंटरनेट केबल्स और वैश्विक शक्ति संतुलन
दुनिया का 95% से अधिक इंटरनेट ट्रैफ़िक समुद्र के नीचे बिछे submarine cable networks से गुजरता है। अमेरिका की गूगल, मेटा, अमेज़न जैसी कंपनियाँ इन केबल्स की मालिक हैं। चीन ने Digital Silk Road के ज़रिए अफ्रीका और एशिया तक अपना नेटवर्क फैला दिया है। भारत पर अभी भी विदेशी कंपनियों का प्रभुत्व है, जिससे डिजिटल संप्रभुता पर सवाल उठता है।
game of gen-z internet social media darkwebभारत की स्थिति
भारत के पास केबल लैंडिंग स्टेशन तो हैं लेकिन नेटवर्क का स्वामित्व सीमित है। इसका मतलब है कि अगर किसी बड़े राजनीतिक या व्यापारिक विवाद की स्थिति बने तो भारत के लिए इंटरनेट पर नियंत्रण चुनौती बन सकता है।
डेटा नियंत्रण और डिजिटल संप्रभुता
डेटा को अब 21वीं सदी का तेल कहा जाता है। अमेरिकी क्लाउड कंपनियाँ जैसे AWS, Google Cloud, Microsoft Azure वैश्विक डेटा स्टोरेज का बड़ा हिस्सा नियंत्रित करती हैं। चीन ने 2017 के साइबर सिक्योरिटी एक्ट में विदेशी कंपनियों को स्थानीय स्तर पर डेटा स्टोर करना बाध्य किया। भारत अभी भी स्थायी समाधान की खोज में है। डेटा प्रोटेक्शन बिल पास हो चुका है लेकिन इन्फ्रास्ट्रक्चर और क्रियान्वयन में अंतर बना हुआ है।
mind design date control amricaसोशल मीडिया और लोकतंत्र पर विदेशी प्रभाव
सोशल मीडिया लोकतांत्रिक संवाद का प्रमुख माध्यम बन चुका है। ट्विटर (X), फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफ़ॉर्म अब चुनावी नतीजों और सत्ता पर असर डालते हैं। अमेरिका व अन्य देशों की नीतियाँ नियंत्रित करती हैं कि किस तरह का कंटेंट दिखे और किसे दबा दिया जाए।
नेपाल में Gen Z क्रांति
Gen Z क्रांति में इंस्टाग्राम और TikTok जैसे प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल कर युवा सड़कों पर उतरे और सत्ता परिवर्तन के दबाव बने। इसने दिखा दिया कि सोशल मीडिया केवल मनोरंजन नहीं बल्कि राजनीतिक हथियार भी है। नेपाल Gen Z क्रांति पढ़ें
बांग्लादेश और इंटरनेट शटडाउन
बांग्लादेश सरकार ने कई बार विरोध प्रदर्शनों के समय इंटरनेट बंद कर दिया। इसके बावजूद फेसबुक और यूट्यूब पर विदेशी मीडिया नरेटिव ने वहां के राजनीतिक घटनाक्रम को प्रभावित किया।
कतर, इज़राइल और फ़िलिस्तीन
कतर में विश्व कप के दौरान मीडिया और सोशल मीडिया पर पश्चिमी नरेटिव हावी रहा। इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष में तो ट्विटर और फेसबुक बार-बार फ़िलिस्तीन समर्थक पोस्ट हटाते देखे गए, जबकि इज़राइल के पक्ष को बढ़ावा मिला। इससे स्पष्ट है कि लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तकनीकी राजनीति के अधीन आती जा रही है।
सोशल मीडिया और चुनावों पर प्रभाव
चुनाव केवल रैलियों और टीवी बहसों से नहीं जीते जाते बल्कि डेटा एनालिटिक्स और सोशल मीडिया कैंपेन से भी तय होते हैं। भारत में चुनाव अभियानों ने फेसबुक और WhatsApp को एक बड़े हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है।
रूस और अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव पर प्रभाव
2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रूस पर आरोप लगे कि उसने फेसबुक विज्ञापन और फर्जी अकाउंट के जरिए मतदाताओं को प्रभावित किया। हजारों बॉट अकाउंट्स ने ट्रंप के पक्ष में नैरेटिव बनाने और क्लिंटन के खिलाफ झूठ फैलाने का काम किया। इसके अलावा WikiLeaks जैसे मंचों पर ईमेल लीक कराकर अमेरिकी जनता के मनोविज्ञान को प्रभावित किया गया। यानी एक विदेशी शक्ति ने सोशल मीडिया टूल्स का उपयोग कर अमेरिका जैसे शक्तिशाली लोकतंत्र के चुनाव की दिशा बदल दी। ट्रंप और विदेश नीति विस्तार पढ़ें
सत्ता परिवर्तन के उदाहरण
- अरब स्प्रिंग (2011) – ट्विटर और फेसबुक ने ट्यूनीशिया, मिस्र, लीबिया तक में बड़े पैमाने पर सत्ता परिवर्तन कराया।
- नेपाल Gen Z आंदोलन – युवा शक्ति ने सोशल मीडिया की मदद से सड़कों पर उतरकर आमूलचूल बदलाव लाया।
- अमेरिका में ट्रंप की जीत (2016) – रूस की डिजिटल हस्तक्षेप रणनीति इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
- म्यांमार – फेसबुक को हिंसा व सत्ता पलट में प्रमुख कारक माना गया।
भारत और भविष्य की चुनौतियाँ
भारत को दो चुनौतियाँ हैं:
- तकनीकी: स्वयं के डेटा सेंटर, क्लाउड और केबल नेटवर्क विकसित करना।
- राजनीतिक: सोशल मीडिया और इंटरनेट को जनता के हित में नियंत्रित करना ताकि विदेशी कंपनियां लोकतंत्र पर हावी न हों।
भारत को यदि दुनिया की डिजिटल राजनीति में दबदबा बनाना है तो अमेरिका और चीन की तरह प्रो-एक्टिव स्ट्रैटेजी अपनानी होगी, अन्यथा केवल उपभोक्ता बनकर रह जाएगा।
निष्कर्ष
इंटरनेट और डेटा पर नियंत्रण ही भविष्य की राजनीति और अर्थव्यवस्था तय करेगा। अमेरिका और चीन ने दिखा दिया है कि डिजिटल संप्रभुता के बिना राष्ट्र अधूरा है। भारत को अब निर्णय लेना होगा कि वह इस क्षेत्र में शक्ति बनेगा या केवल बाज़ार। सोशल मीडिया और चुनावी राजनीति पर बढ़ते विदेशी हस्तक्षेप ने यह साबित कर दिया है कि डिजिटल लोकतंत्र की सुरक्षा अगली बड़ी चुनौती होगी।
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