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कट्टर हिंदुत्व से कट्टर तालिबान तक संबंध !

देवबंद से तालिबान तक: वैचारिक समानता या राजनीतिक दूरी? 🕌 देवबंद से तालिबान तक: वैचारिक समानता या राजनीतिक दूरी? भारत–तालिबान संबंध : वक्त की ज़रूरत हाल ही में अफ़ग़ानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्ताक़ी की भारत यात्रा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा बटोरी। यह यात्रा भारत–अफ़ग़ानिस्तान संबंधों को नए सिरे से देखने का अवसर प्रदान करती है। वर्षों तक दोनों के बीच संवाद सीमित रहा, पर अब भू–राजनीतिक परिस्थितियों ने दोनों को बातचीत की मेज़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। सवाल यह भी है कि — क्या तालिबान की वैचारिक जड़ें देवबंद से जुड़ी हैं, और क्या भारत को ऐसे समूह से संबंध बढ़ाने चाहिए? आइए इसे क्रमवार समझते हैं 👇 🕋 1. देवबंद और तालिबान का वैचारिक संबंध 🔸 ऐतिहासिक आधार दारुल उलूम देवबंद की स्थापना 1866 में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध धार्मिक और शैक्षणिक आंदोलन के रूप में हुई। इसका उद्देश्य था इस्लामी शिक्षा, नैतिकता और सामाजिक सुधार को पुनर्जीवित करना। 🔸 वैचारिक समानता, प्रत्यक्ष संबंध नहीं “तालिबान” शब्द का अर्थ है विद्यार्थी — उनके कई सदस...

आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक व्यवस्था: समाज और सभ्यता की दिशा कौन तय करता है?

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आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक व्यवस्था: समाज और सभ्यता की दिशा कौन तय करता है? मानव सभ्यता का इतिहास बताता है कि आर्थिक और राजनीतिक हालात ही समाज की सोच और धार्मिक प्रभाव को गढ़ते और सीमित करते हैं। जब गरीबी और राजनीतिक कमजोरी हावी होती है, तो धर्म और अंधविश्वास को पनपने का मौका मिलता है। वहीं, जब आर्थिक प्रगति और राजनीतिक स्थिरता आती है, तो समाज खुलकर सोचने लगता है और आधुनिकता का मार्ग प्रशस्त होता है।   मध्यकालीन यूरोप: धर्म और सत्ता का गठजोड़ मध्यकाल तक यूरोप में धर्मान्धता और हिंसा चरम पर थी। चर्च केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं था, बल्कि जीवन के हर पहलू पर उसका नियंत्रण था। यहाँ तक कि “स्वर्ग जाने के टिकट” और “पाप से मुक्ति के प्रमाणपत्र” तक चर्च द्वारा बेचे जाते थे। लेकिन जैसे-जैसे मशीनें बनीं, कारखाने शुरू हुए और औद्योगिक क्रांति आई, समृद्धि बढ़ी। आर्थिक प्रगति के साथ चर्च की पकड़ ढीली हुई और लोगों ने स्वतंत्र सोच की ओर कदम बढ़ाया। इस्लामिक दुनिया: राजनीति और धर्म का घालमेल इस्लाम में धर्म और राजनीति को अलग न करना आज भी उसके लिए संकट का कारण है। कई देश ल...

कम निवेश में ऑनलाइन पैसे कमाने के 6 आसान और प्रभावी तरीके

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 फ्रीलांसर्स कैसे पैसे कमाते हैं !         लो-इन्वेस्टमेंट (कम निवेश) में पैसे कमाने के लिए कई ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स मौजूद हैं, जिनसे आसानी से बिना ज्यादा खर्च किए ऑनलाइन कमाई शुरू की जा सकती है। उनमें से कुछ लोकप्रिय और प्रभावी विकल्प हैं: 1. फ्रीलांसिंग वेबसाइट्स  :  Fiverr, Upwork, Guru जैसे प्लेटफॉर्म जहां आप अपनी स्किल के मुताबिक जैसे लेखन, डिजाइनिंग, प्रोग्रामिंग आदि सेवाएं देकर पैसे कमा सकते हैं। यह बिल्कुल कम निवेश वाला तरीका है जहां सिर्फ इंटरनेट और स्किल चाहिए। 2. एफिलिएट मार्केटिंग  :  EarnKaro, Amazon Associates जैसे प्लेटफॉर्म जहां बिना खुद का प्रोडक्ट बनाए आप दूसरे के प्रोडक्ट का प्रमोशन कर के कमीशन कमा सकते हैं। इसमें भी लागत न्यूनतम होती है और शुरूआत आसान होती है। 3. माइक्रो टास्क और सर्वे  :  ySense, BananaBucks, Google Opinion Rewards जैसे प्लेटफ़ॉर्म जहां छोटे-छोटे ऑनलाइन कार्य जैसे सर्वे भरना, वीडियो देखना, गेम खेलना आदि करके पैसे मिलते हैं। बिना निवेश के अतिरिक्त आमद...

महात्मा गांधी की वर्तमान में प्रासंगिकता

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महात्मा गांधी और वर्तमान में प्रासंगिकता महात्मा गांधी को एक व्यक्ति के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। महात्मा गांधी को भारतीय संस्कृति और इसके अध्यात्म, धर्म राजनीति, समाज और हर एक व्यक्ति को समग्रता में समेटे हुए एक आदर्श प्रतिदर्श के रूप में देखा जाना चाहिए। सवाल यह है कि महात्मा गांधी को किस रूप में याद किया जाता है और क्यों नहीं समझ पा रहे हैं? दरअसल महात्मा गांधी को एक व्यक्ति के रूप में  और अहिंसा और सत्य के प्रति निष्ठा रखने वाले व्यक्ति के तौर पर पढ़ाया गया। उस सत्यता और अहिंसा में जो चीज वर्तमान में आम आदमी समझता है वह निहायत ही एक तरफा और एक पक्षीय है। महात्मा गांधी के बहुत सारे ऐसे सिद्धांत हैं जो कभी भी एक पक्षीय नहीं रहे हैं, उनको समग्रता में देखा जाना चाहिए। मेरी दृष्टि में वर्तमान में युवाओं को महात्मा गांधी को अवश्य पढ़ना और समझना चाहिए । मैं पढ़ने से ज्यादा समझने पर बल दे रहा हूं। मैं यह कहूंगा कि पूरी दुनिया की विभिन्न समस्याओं का समाधान का अगर एक दर्पण है तो वह महात्मा गांधी के दर्शन के रूप में है । हालांकि महात्मा गांधी के दर्शन को अतिवादी दर्शन कहा ...

सेवानिवृत सैनिकों का राष्ट्र निर्माण में योगदान

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  भारतीय सेना दुनिया की बड़ी और ताकतवर सेना में गिनी जाती है। वर्तमान में लगभग 14 लाख सक्रिय और लगभग 10 लाख रिजर्व सैनिक हैं। थल सेना सर्वाधिक शक्तिशाली और प्रशिक्षित है।  भारतीय सैनिकों का राष्ट्र निर्माण और राष्ट्र से बाहर भी बड़ा योगदान रहा है। सेवानिवृति के बाद अनुशासित और कर्मठ नागरिक भारतीय समाज को मिलता है। सेवानिवृत्ति के बाद सैनिकों का राष्ट्र निर्माण में योगदान अद्वितीय रहा है। अधिकांश सैनिक 16 साल की सेवा के बाद सेवानिवृत हो घर आ जाते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद सैनिकों को जो इज्जत ,सम्मान मिलना चाहिए वो नहीं मिल पाता है। सामाजिक समायोजन में उनकी अनुशासन प्रियता और जीवन शैली के कारण काफी कठिनाई  होती हैं। सेवानिवृत्त होते ही उनको मिली काफी सारी संपत्ति समूह भोज और समारोह में व्यय कर दी जाती है। इसके बाद अनेक जिम्मेदारियों का भार आ जाता है,जिनमें पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक इत्यादि प्रमुख हैं। भारत में व्यक्तिवाद नही है, समूह या सामाजिकता प्रथम और महत्वपूर्ण है, इसलिए भारतीय समाज में समाज की रीति और पहचान संबंधी काल्पनिक मुद्दे अधिक प्रभावी हो जाते हैं।...