विवाह दो व्यक्तियों का नहीं , दो संस्कृतियों और पीढ़ियों की साझेदारी है !
विवाह दो लोगों (महिला-पुरुष) का सम्मिलन मात्र नहीं होता है, बल्कि दो परिवारों, पीढ़ियों और संस्कृति मिलन होता है। इसलिए रिश्तों के समय दबाव या एक दो खूबी या पक्ष ना देख कर विविध पक्ष देख कर तय होने चाहिए।
विवाह के लिए विवाह: भारत में विवाह करना अनिवार्य रूप से पैरेंट्स के लिए कर्तव्य माना गया है। इसके पीछे : धर्म (कर्तव्य पालन), प्रजा (संतान उत्पन्न कर वंश चलाना विशेष रूप से पुत्र उत्पन्न करना और तीसरा कारण रति (शारीरिक काम भावना संतुष्ट करना मुख्य कारण हैं। इस्लाम और क्रिश्चियन में प्राथमिकताओं में काम और प्रजा अर्थात् संतान उत्पन्न करना प्रथम माना है। विवाह को अटूट और अनंतिम मान्यता है लेकिन इस्लामिक मान्यताओं में यह अलग दृष्टि से देखा जाता है। बहु विवाह खासकर बहुपति विवाह सभी संस्कृतियों में आम तौर पर प्रचलित रहा है जिसमें बदलाव हो चुका है अब एकल विवाह का प्रचलन बढ़ रहा है। लेकिन तलाक के बाद पुनर्विवाह होना भी एक बहु विवाह का रूप ही है। यह व्यक्तिगत जीवन में एक बड़ी क्रासदी होती है। इस क्रासदी से बचने के लिए अधिकतर महिलाएँ हिंसा झेलती रहती हैं।
कुछेक मामलों में पुरुष भी हिंसा का शिकार होने लगे हैं ऐसे मामले भी सामने आते हैं।
ये भारतीय परिवारों में विवाह/रिश्ता तय करते समय ध्यान रखने योग्य बातें हैं:
1. परिवार और सामाजिक पृष्ठभूमि: रहन सहन और अनुशासन।
2. परिवार की सामाजिक स्थिति, संस्कार और जीवनशैली: आदतें और व्यवहार तथा सम्मान करने का नजरिया।
3. परिवार के सदस्यों का आपसी व्यवहार और सोच।
4. दोनों परिवारों के माहौल में सामंजस्य।
5. शिक्षा और करियर तथा अवसर देने की सम्भावनाएँ।
6. लड़का-लड़की की शैक्षणिक योग्यता। बराबरी और समानता।
7. करियर की दिशा, नौकरी/व्यवसाय की स्थिरता। भावी जीवन में कठिनाइयों से खीझने की क्षमता।
8. भविष्य की संभावनाओं और सोच में समानता।
9. आर्थिक स्थिति
10. परिवार की आर्थिक पृष्ठभूमि और स्थिरता।
11. लड़का-लड़की की आत्मनिर्भरता।
12. शादी के बाद जीवनस्तर में संतुलन।
13. स्वास्थ्य
14. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य। शारीरिक तो अमूमन दिखाई दे ही देता है लेकिन मानसिक स्वास्थ्य का परीक्षण वार्ता करने और चीज़ों, महिलाओं , पुरुषों , परिवार के प्रति नज़रिया और सोच का दायरे से मालूम पड़ जाता है। एक बात और है जिसमें अपनापन जल्दी आए वो पॉजिटिव पार्टनर है और जो कृत्रिम दूरियाँ रखें उसको अधिक समझना और समझाना पड़ेगा।
15. वंशानुगत या गंभीर बीमारियों की जानकारी।
16. खानपान और जीवनशैली की आदतें। स्वच्छता के प्रति आदतें। यह एक दिन में कैसे मालूम करें ? आप रसोई , बाथ रूम देखें और अस्त व्यस्त पड़े जूते चप्पल या चीज़ों के रख रखाव से मालूम कर सकेंगे।
17. स्वभाव और व्यक्तित्व: क्या आप पर दबाव डालते हैं अपनी बात मनवाने में ? या आप पर प्रभावी रहने की कोशिश करते है ? तो आपके अनुकूल नहीं है।
18. आपसी समझ, सहनशीलता और संवाद क्षमता।
19. रुचियाँ, आदतें और सोचने का तरीका। तार्किकता , सोशल मीडिया से प्रभावित होने की संभावना तथा पड़ोसियों के प्रति नजरिया परखें।
20. एक-दूसरे के सपनों और लक्ष्यों का सम्मान।
21. सांस्कृतिक और धार्मिक पहलू देखना चाहिए। पहनावा और खाना पान आपके अनुकूल है या नहीं!
22. जातीय, धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएँ।
23. त्योहारों, रीति-रिवाजों और परंपराओं में सामंजस्य।
25. परिवार की अपेक्षाएँ और संरचना
26. संयुक्त परिवार या एकल परिवार में रहने की स्थिति।
27. परिवार के सदस्यों की आपसी भूमिकाएँ और अपेक्षाएँ।
28. कानूनी और सामाजिक जिम्मेदारी।
29. विवाह की वैध आयु।
30. दोनों पक्षों की वैवाहिक स्थिति (पहले से शादी/तलाक/विधवा)। रिश्ते छूटे तो क्यों ?
31. विवाह में स्वतंत्र और कानूनी सहमति।
32. लड़का-लड़की की स्वतंत्र सहमति।
33. सबसे अहम – क्या दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हैं?
35. केवल परिवार की सहमति नहीं, बल्कि लड़का-लड़की की व्यक्तिगत इच्छा को महत्व। क्योंकि जीवन उन्ही को जीना है।
क्यों जरूरी है लड़का-लड़की की पसंद और सहमति शादी में?
विवाह जिनका होता है उनकी पसंद के साथ साथ वैचारिकी इंपोर्टेंट होती है। क्योंकि पारिवारिक जीवन ही उनको जीना है।
जन्म के परिवार से पृथक होने का समय होता है जिसके बाद प्रजनन का परिवार का निर्माण या सृजन होता है। उनमें असामंजस्य आकर्षण को बहुत तेजी से कम करता है। उनके सपने एक दूसरे के विरोध में खड़े नजर आते हैं और आवश्यकतानुसार में टकराकर उनकी पारिवारिक भूमिका को एक दूसरे के ख़िलाफ़ पाती है।
परिवार का टूटना पुरुष और महिला के साथ साथ बच्चों और सम्पूर्ण परिवार के लिए दुखद और गंभीर क्राइसिस होती है।
यह सब डिसएडजस्टमेंट का भी परिणाम है। यह मनोवैज्ञानिक समस्या अधिक है और सामाजिक सांस्कृतिक कम है। अस्थिर मेंटालिटी और अदूरदर्शिता तथा मानसिक तनाव और अवसाद सहित विभाजित मानसिकता बड़ी समस्या है। अधिकतर मामलों में पुरुष हो या महिला जब समस्या ग्रस्त व्यक्तित्व या चरित्र के होते हैं तब वो स्वयं को उचित ठहरा कर यह मानते हैं कि दूसरे पक्ष को दबाव से चुप करवा कर मामला हल करने की सोचते हैं। यह एक विभाजित परिवार बनता है।
संवाद केवल भाषा से होने लगता है जबकि भावों, भावनाओं, शारीरिक और मानसिक जरूरतों के अनुसार नहीं होता है।
विवाह निर्णय : परिवार, संस्कार, शिक्षा और स्वतंत्रता
निर्णय में भागीदारी सबकी होनी चाहिए तथा सम्पूर्ण उत्साह और संतुष्टि महत्वपूर्ण है। इसमें भावुकता नहीं प्रैक्टिकल होना चाहिए और सवाल जवाब साफ़ साफ़ होने चाहिए किंतु ऐसे नहीं जो किसी पक्ष के आत्मसम्मान के ख़िलाफ़ हो।
आत्मसम्मान पहले जरूरी है और यह ध्यान रखिए कि परिवार के सदस्य जिसको बना रहे हैं उसको पहले ही अपमानित काटने का मतलब है आप अयोग्य हो।
परिवार से लेकर भावी पार्टनर के ईगो और आदतों का निरीक्षण करना जरूरी है। बचपन से किया ग़ायबपालन पोषण ही किसी को सम्मान करने और सम्मान पाने का अधिकारी बनाता है।
यह भी देखना होगा कि जिस परिवार में रिश्ता किया जाना है, उसमें स्वतंत्रता कितनी होगी और किस तरह की होगी ? आपकी आवश्यकता किस तरह की है ? आप यह मान कर कभी नहीं चलें कि आप एडजस्ट कर लेंगे या दूसरे पार्टनर को अनुकूल बना लेंगे। ष्कर्ष : भारतीय समाज में विवाह केवल दो व्यक्तियों का संबंध नहीं, बल्कि दो परिवारों और संस्कृतियों का मेल है। इसमें सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, स्वास्थ्य और व्यक्तिगत पहलुओं का संतुलन ही रिश्ते को सफल और स्थिर बनाता है।
क्यों जरूरी है लड़का-लड़की की पसंद और सहमति शादी में?
विवाह जिनका होता है उनकी पसंद के साथ साथ वैचारिकी इंपोर्टेंट होती है। क्योंकि पारिवारिक जीवन ही उनको जीना है।
जन्म के परिवार से पृथक होने का समय होता है जिसके बाद प्रजनन का परिवार का निर्माण या सृजन होता है। उनमें असामंजस्य आकर्षण को बहुत तेजी से कम करता है। उनके सपने एक दूसरे के विरोध में खड़े नजर आते हैं और आवश्यकतानुसार में टकराकर उनकी पारिवारिक भूमिका को एक दूसरे के ख़िलाफ़ पाती है।
परिवार का टूटना पुरुष और महिला के साथ साथ बच्चों और सम्पूर्ण परिवार के लिए दुखद और गंभीर क्राइसिस होती है।
यह सब डिसएडजस्टमेंट का भी परिणाम है। यह मनोवैज्ञानिक समस्या अधिक है और सामाजिक सांस्कृतिक कम है। अस्थिर मेंटालिटी और अदूरदर्शिता तथा मानसिक तनाव और अवसाद सहित विभाजित मानसिकता बड़ी समस्या है। अधिकतर मामलों में पुरुष हो या महिला जब समस्या ग्रस्त व्यक्तित्व या चरित्र के होते हैं तब वो स्वयं को उचित ठहरा कर यह मानते हैं कि दूसरे पक्ष को दबाव से चुप करवा कर मामला हल करने की सोचते हैं। यह एक विभाजित परिवार बनता है।
संवाद केवल भाषा से होने लगता है जबकि भावों, भावनाओं, शारीरिक और मानसिक जरूरतों के अनुसार नहीं होता है।
विवाह निर्णय : परिवार, संस्कार, शिक्षा और स्वतंत्रता
निर्णय में भागीदारी सबकी होनी चाहिए तथा सम्पूर्ण उत्साह और संतुष्टि महत्वपूर्ण है। इसमें भावुकता नहीं प्रैक्टिकल होना चाहिए और सवाल जवाब साफ़ साफ़ होने चाहिए किंतु ऐसे नहीं जो किसी पक्ष के आत्मसम्मान के ख़िलाफ़ हो।
आत्मसम्मान पहले जरूरी है और यह ध्यान रखिए कि परिवार के सदस्य जिसको बना रहे हैं उसको पहले ही अपमानित काटने का मतलब है आप अयोग्य हो।
परिवार से लेकर भावी पार्टनर के ईगो और आदतों का निरीक्षण करना जरूरी है। बचपन से किया ग़ायबपालन पोषण ही किसी को सम्मान करने और सम्मान पाने का अधिकारी बनाता है।
यह भी देखना होगा कि जिस परिवार में रिश्ता किया जाना है, उसमें स्वतंत्रता कितनी होगी और किस तरह की होगी ? आपकी आवश्यकता किस तरह की है ? आप यह मान कर कभी नहीं चलें कि आप एडजस्ट कर लेंगे या दूसरे पार्टनर को अनुकूल बना लेंगे।
👉 निष्कर्ष : भारतीय समाज में विवाह केवल दो व्यक्तियों का संबंध नहीं, बल्कि दो परिवारों और संस्कृतियों का मेल है। इसमें सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, स्वास्थ्य और व्यक्तिगत पहलुओं का संतुलन ही रिश्ते को सफल और स्थिर बनाता है।
Ati uttam Sir ji
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