कट्टर हिंदुत्व से कट्टर तालिबान तक संबंध !

देवबंद से तालिबान तक: वैचारिक समानता या राजनीतिक दूरी? 🕌 देवबंद से तालिबान तक: वैचारिक समानता या राजनीतिक दूरी? भारत–तालिबान संबंध : वक्त की ज़रूरत हाल ही में अफ़ग़ानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्ताक़ी की भारत यात्रा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा बटोरी। यह यात्रा भारत–अफ़ग़ानिस्तान संबंधों को नए सिरे से देखने का अवसर प्रदान करती है। वर्षों तक दोनों के बीच संवाद सीमित रहा, पर अब भू–राजनीतिक परिस्थितियों ने दोनों को बातचीत की मेज़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। सवाल यह भी है कि — क्या तालिबान की वैचारिक जड़ें देवबंद से जुड़ी हैं, और क्या भारत को ऐसे समूह से संबंध बढ़ाने चाहिए? आइए इसे क्रमवार समझते हैं 👇 🕋 1. देवबंद और तालिबान का वैचारिक संबंध 🔸 ऐतिहासिक आधार दारुल उलूम देवबंद की स्थापना 1866 में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध धार्मिक और शैक्षणिक आंदोलन के रूप में हुई। इसका उद्देश्य था इस्लामी शिक्षा, नैतिकता और सामाजिक सुधार को पुनर्जीवित करना। 🔸 वैचारिक समानता, प्रत्यक्ष संबंध नहीं “तालिबान” शब्द का अर्थ है विद्यार्थी — उनके कई सदस...

युक्रेन-रूस युद्ध :कारण और प्रभाव तथा भारत

 रूस- यूक्रेन : शांति के लिए युद्ध



रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है ,बार बार मना करने और केवल युद्ध अभ्यास बताने के बाद आखिर पुतिन ने आदेश दिया और पांच मिनट बाद रसियन आर्मी ने यूक्रेन पर हमला कर दिया।


कारण :


रूस पिछले कई वर्षो से यूक्रेन पर दबाव बना रहा था। यूक्रेन रूस से अलग हुआ स्वतंत्र देश है। यूरोप से सीधी पहुंच के कारण नाटो में शामिल होने का फैसल कर चुका और इसी वजह से रूस इसको अपने लिए खतरा समझ रहा था। मास्को से कीव (यूक्रेन की राजधानी) बहुत करीब है। अगर नाटो गठबंधन रूस की छाती पर चढ़ने को बेताब था तो रूस जल्दी से इस संभावना को समाप्त करने को बेचैन था। जाहिर है कोई भी देश अपना निर्णय अपने हितों के लिए ले सकता है; इस सिद्धांत को यूक्रेन और रूस दोनो के लिए न्यायसंगत कहा जा सकता है।यूक्रेन अपने हित और रूस अपने हित देख रहा है।

सही या गलत : 

युक्रेन में बड़ी संख्या में रसियन समर्थक लोग हैं ,ज्यादातर रसियन भाषा बोलते हैं। वहीं यूक्रेन सरकार स्वाधीन राष्ट्र और स्वाभिमान के लिए लड़ाई कर रही है। 

बहुत से ऐसा मानते हैं अपनो का अपनो के खिलाफ युद्ध हो रहा है।

राजनीति,मुहब्बत और जंग में सब कुछ जायज करार दिया जाता है,विजेता अपना इतिहास लिखता है।  इसलिए दोनो अपनी जगह सही हैं। 


रूस यूक्रेन युद्ध और भारत :

1. अगर यूक्रेन पर रूस कब्जा करता है तो अपनी पसंद की सरकार बनाएगा। भारत को नए सिरे से राजनईक संबंध बनाने पड़ेंगे।


2. महंगाई बढ़ना तय है ऐसी स्थिति में भारत में आंतरिक तनाव बढ़ेगा।

3. वर्तमान केंद्र सरकार पर आंतरिक और बाहरी दबाव बढ़ेगा। चीन सीमा पर ज्यादा दबाव का सामना करना पड़ेगा।

4. सरकार पर यदि चुनाव परिणाम का विपरीत असर पड़ेगा तो ध्रुवीकरण और राष्ट्रवाद को प्रभावी करने के लिए दबाव बढ़ेगा। जिससे आंतरिक अशांति बढ़ सकती है।

5. भारत एक तरफ अमेरिका और दूसरी तरफ रूस से संबंध बनाए रखेगा जिससे यूक्रेन मामले में "देखो और इंतजार करो" की रणनीति पर रहेगा।

6. भारत में हथियार खरीद का दबाव बढ़ेगा।


युक्रेन - रूस और चीन :

1. चीन तटस्थ हो कर रूस को आंतरिक समर्थन देगा, वजह अमेरिका , नाटो और पड़ोस के संबंध और रेशम मार्ग है।

2. चीन अपने पड़ोसियों पर दबाव बढ़ेगा और अपनी बेचैनी भारत और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों पर दबाव के रूप में जाहिर करेगा।

3. चीन नाटो को कमजोर होता देखना चाहेगा। 

4. नाटो, रूस की आर्थिक कमजोरी और दबाव से चीन को बढ़त मिलेगी।

5. रूस चीन संबंधों में मजबूती आएगी जिससे भारत पर दबाव बढ़ेगा।


यूक्रेन -रूस विवाद और नाटो :


शांत सो रहे नाटो में अचानक से हलचल आ गई , ट्रंप के काल में बिखरे नाटो में नई जान आ गई। 

1. नाटो अब अपनी ताकत पर पुनर्विचार करेगा।

2. नाटो का विस्तार करने की नीति पर जोर रहेगा।

3. अब नाटो पहले की तरह मध्य पूर्व में रक्त रंजित नीति की अपेक्षा आर्थिक मदद की नीति अपनाएगा।

4. नाटो दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों और भारत पर मेहरबान रहेगा।

5. नाटो के सामने रूस चीन गठबंधन खड़ा होगा।

यूक्रेन रूस विवाद और नाटो :


शांत सो रहे नाटो में अचानक से हलचल आ गई , ट्रंप के काल में बिखरे नाटो में नई जान आ गई। 

1. नाटो अब अपनी ताकत पर पुनर्विचार करेगा।

2. नाटो का विस्तार करने की नीति पर जोर रहेगा।

3. अब नाटो पहले की तरह मध्य पूर्व में रक्त रंजित नीति की अपेक्षा आर्थिक मदद की नीति अपनाएगा।

4. नाटो दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों और भारत पर मेहरबान रहेगा।

5. नाटो के सामने रूस चीन गठबंधन खड़ा होगा।

युक्रेन, रूस और मध्य पूर्व :


युक्रेन एक छोटा सा देश है लेकिन इस  विवाद के बड़े व्यापक प्रभाव होंगे।

1. रूस -चीन बनाम नाटो गठबंधन हुआ तो नया शीत युद्ध तय है।


2. एशिया में कमजोर देशों के आंतरिक मामलों में दखल से अशांति रहेगी।

3. शक्ति संतुलन का नया युग शुरू होगा।


4. निर्गुट आंदोलन का पुनर्जीवन हो सकता है।

5. मध्य पूर्व ,अफगानिस्तान में चीन का प्रभाव बढ़ेगा।

6. रूस का प्रभाव अधिक बढ़ेगा तथा ब्लादिमीर पुतिन लंबे समय तक रूस का राष्ट्रपति बना रहेगा। इसके अनुसरण में चीन छोटे देशों जैसे ताइवान पर हमला कर सकता है।

भारत क्या करे :

 भारत की विदेश नीति हमेशा ही तटस्थ रहने की रही है। पिछले कुछ वर्षों से अमरीका की तरफ ज्यादा झुकाव रहा है। जिससे रूस और चीन से दूरियां बढ़ी हैं।

1. भारत शांति की बात करे और बात चीत से समाधान का पक्षधर रहे।

2. आंतरिक शांति पर ध्यान दे तथा तीव्र आर्थिक विकास के लिए रोड मैप बनाए।

3. पड़ोसियों से रिश्ते सुधारे । राष्ट्रवाद को नए सिरे से देखे।

4. महंगाई बढ़ने पर अन्य खर्चों में कटौती करे और विपक्ष को साथ ले।

5. गुट निरपेक्षता में विश्वास करने वाले वैश्विक नेताओ से पुनः संपर्क करे और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों से सीधा संपर्क जोड़े।

6. क्वाड जैसे अन्य बहु पक्षीय सैन्य समूह अपनी सीमाओं को सुरक्षित रखें के लिए बनाए । निर्गुट का मतलब शक्ति विहीन होना नही हो। 1962 की भूल नही दोहराई जाए।

7. TAPI प्रोजेक्ट को पुनर्जीवित कर ईरान को इसमें शामिल करे।

8. ऊर्जा के वैकल्पिक साधनों को तेजी से विकसित करे और जैव ईंधन पर निर्भरता तेजी से कम करे।

9. अपने सभी पड़ोसियों से धरातलीय संपर्क जोड़े और सीधा सड़क संपर्क स्थापित करे।

10. ट्रांस एशिया, ट्रांस इंडो यूरोप, ट्रांस इंडो अफ्रीकन कोरोडोर बनाने का खाका तैयार करे।


टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर शब्दों में रूस एवं यूक्रेन युद्ध की व्याख्या

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  2. उत्तर
    1. उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद चेची साहब

      हटाएं

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