कट्टर हिंदुत्व से कट्टर तालिबान तक संबंध !

देवबंद से तालिबान तक: वैचारिक समानता या राजनीतिक दूरी? 🕌 देवबंद से तालिबान तक: वैचारिक समानता या राजनीतिक दूरी? भारत–तालिबान संबंध : वक्त की ज़रूरत हाल ही में अफ़ग़ानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्ताक़ी की भारत यात्रा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा बटोरी। यह यात्रा भारत–अफ़ग़ानिस्तान संबंधों को नए सिरे से देखने का अवसर प्रदान करती है। वर्षों तक दोनों के बीच संवाद सीमित रहा, पर अब भू–राजनीतिक परिस्थितियों ने दोनों को बातचीत की मेज़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। सवाल यह भी है कि — क्या तालिबान की वैचारिक जड़ें देवबंद से जुड़ी हैं, और क्या भारत को ऐसे समूह से संबंध बढ़ाने चाहिए? आइए इसे क्रमवार समझते हैं 👇 🕋 1. देवबंद और तालिबान का वैचारिक संबंध 🔸 ऐतिहासिक आधार दारुल उलूम देवबंद की स्थापना 1866 में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध धार्मिक और शैक्षणिक आंदोलन के रूप में हुई। इसका उद्देश्य था इस्लामी शिक्षा, नैतिकता और सामाजिक सुधार को पुनर्जीवित करना। 🔸 वैचारिक समानता, प्रत्यक्ष संबंध नहीं “तालिबान” शब्द का अर्थ है विद्यार्थी — उनके कई सदस...

हिजाब विवाद:व्यक्ति बनाम राष्ट्र और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार

 हिजाब विवाद, व्यक्ति बनाम राज्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संदर्भ में

         फोटो: pexels

पिछले दिनों कर्नाटक राज्य में छात्राओं द्वारा हिजाब पहन कर शिक्षण संस्थानों में आना एक पक्ष को अनुचित लगा और हिजाब विवाद न्यायालय तक पहुंच गया। 

मीडिया ने अपने अपने अनुसार ट्रायल किया और इसको राष्ट्रीय मुद्दा बना कर समस्या के रूप में प्रचारित कर आम जन का ध्यान खींचा।
इस विषय को ले कर दो पक्ष हैं जो विपरीत राय रखते हैं। कुछ लोग इसको व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार मानते हैं और कुछ इसको धर्म और राष्ट्र के तराजू में रख रहे हैं।

लेकिन बड़ी संख्या में तीसरा पक्ष भी है जो इसको ले कर उदासीन है। 

लेकिन दो पक्ष जो सोशल और इलोक्ट्रोनिक मीडिया पर अपनी अपनी दलीलें दे कर बराबर प्रयासरत हैं कि वो सही साबित हों।
आइए जानते हैं दोनो पक्षों को;


हिजाब पर पाबंदी के पक्ष में तर्क:


हिजाब विवाद पर आम जनता दो भागों में विभाजित है।


एक पक्ष का कहना है कि हिजाब या धार्मिक वस्त्र शिक्षण संस्थानों में नही पहने चाहिए क्योंकि:


1. छात्राओं और छात्रों में विभाजन होता है।

2. आधुनिक शिक्षा में धर्म को हर जगह नहीं खड़ा करना चाहिए।

3. हिजाब पहनना अनिवार्य नहीं है तो क्यों पहना जाए?


4. सभी अलग अलग पहनेंगे तो आगे चल कर यह खाई बढ़ेगी।
5. शिक्षा और शिक्षण संस्थान अपना यूनिफॉर्म कोड रखते हैं तो विशेष समुदाय को छूट क्यों?

6. स्वतंत्रता अनंत नही होती तथा शिक्षा अच्छे नागरिक निर्मित करती है लेकिन धर्म और पहचान से शिक्षा का पवित्र उद्देश्य धूमिल होते हैं।

7. राष्ट्रीय चरित्र निर्माण में बाधक।

8. आपसी संघर्ष और वैमानश्यता बढ़ सकती है।

हिजाब पर पाबंदी के विपक्ष में तर्क:

यह दूसरा पक्ष है जो इसको व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के रूप में देखता है।

1. यह एक वस्त्र है जिससे शिक्षा प्राप्ति पर विपरीत असर नहीं हो सकता।

2. भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है इसलिए महाविद्यालय में स्कार्फ पहन सकती हैं तो हिजाब क्यों नहीं? इसलिए यह व्यक्तिगत और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत आता है। 

3. भारत में विविधता है इसको छुपाने से कोई लाभ नहीं बल्कि सामना होने से मनोवैज्ञानिक दूरियां कम होंगी।

4. यह व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर है इसलिए यह निजी मामला है।

5. जब सिक्खों को पगड़ी पहने की छूट है तो हिजाब पर आपत्ति क्यों?

6. हिजाब गरिमा विहीन पहनावा नही है।

7. व्यक्तिगत मामलों में राज्य का दखल अनुचित है और गरिमा के खिलाफ है।

8. जिस तरह जींस ,टॉप और बिकनी  पहनना आम होता जा रहा है जो कि शुद्ध भारतीय पहनावा नही है तो हिजाब से क्या आपत्ति है?

फोटो क्रेडिट :pexels

लेकिन कुछ विचार और ऐतिहासिक घटनाओं पर विमर्श होना अति आवश्यक है।


1. 1924 तक भारत में महिलाओ पर स्तन ढकने तक के  लिए टैक्स लिया जाता था। बाकायदा टैक्स वसूल करने वाला अधिकारी आता और स्तनों के आकार के हिसाब से टैक्स वसूला जाता था। उसे समय उच्च जाति द्वारा यह दबावपूर्वक किया जाता था।  लेकिन  एक महिला ने इसका विरोध किया और खुद ने अपने स्तन काट दिए ,बाद में उसकी मृत्यु हो गई और उसके पति ने उसकी चिता में कूद कर आत्महत्या कर ली। अंग्रेजों ने इस टैक्स को खत्म किया। 

2. सती प्रथा में महिलाओं को पति के  साथ जिंदा जलाया जाता था जिसे सती होना कहा गया। इसका महिमामंडन किया जाता था और आज भी कई जगह अंध विश्वासी देवत्व प्रदान करते हैं।


3.  संपूर्ण दुनिया में महिलाओ को अनेक वर्जनाओं का पालन करना होता है। लेकिन महाभारत के एक प्रसंग में जुए में पत्नी को लगाया जाता है और हारने पर विजेता पक्ष राज दरबार में महिला को बालों से खींच कर लाता है और वस्त्र उतारने का प्रयास करता है।


4.  अफगानिस्तान और मध्य पूर्व में तालिबान और आईएसआईएस के क्रूरतापूर्ण कृत्य की घटनाएं चर्चित रही हैं।


5.  विश्व युद्ध के समय जर्मन महिलाओ और आयरिश वार के समय महिलाओ के साथ अत्याचार किए गए।


6.   वियतनाम में अमेरिकन सैनिकों के मनोरंजन के लिए   छोटी छोटी बालिकाओं को इंजेक्शन लगा कर जल्द युवा बनाया गया और उनका शोषण करवाया गया।


लेकिन इन सभी में एक चीज सामने है वो यह है कि कमजोर वर्ग और समुदाय अथवा पराजीत समूहों की महिलाओं के साथ अन्याय किया गया जो कि निरपराध और निर्दोष थी।

क्या हिजाब विवाद प्रकरण को इस नजरिए से देखा जाए?


इससे पूर्व कुछ सवाल जवाब चाहते हैं।

१. क्या सांस्कृतिक पहचान रखना अनिवार्य है?, इस सवाल से ज्यादा महत्वपूर्ण सवाल यह नही है कि सांस्कृतिक पहचान रखने में गलत क्या है?


२. धर्म निरपेक्ष राष्ट्र में स्कार्फ और हिजाब में अंतर करना कैसे सही है?


३. शिक्षा में धार्मिक अथवा सांस्कृतिक पहचान कितना और कैसे बाधक है? हिजाब विवाद के पीछे जायज वजह क्या है?


४. क्या यह अधिकार भीड़ को हो कि कौन क्या पहने और क्या नहीं? हिजाब पहनना व्यक्तिगत क्यों नहीं?


५. जिस प्रकार पाठ्यक्रम निर्धारित करना सरकार का काम है, उसी प्रकार  किस अवसर पर और कहां कोई क्या पहनेगा ,यह तय सरकार करे?


६. क्या एक समुदाय सांस्कृतिक पहचान के कारण शिक्षा और राष्ट्रीय चरित्र निर्माण में बाधा का कारण नही बन रहा?


७. क्या अल्प संख्यकों पर कुछ चीजें थोपी नही जा रही?


उपरोक्त सवालों के जवाब तलाशे हैं।

1. हिजाब को पहनने को लेकर विरोध को सही नही कहा जा सकता लेकिन  शिक्षण संस्थानों में निर्बाध स्वतंत्रता और धार्मिक पहचान बाधक बने तो उसे दरकिनार करना बेहतर है। नागरिकों को इसमें हस्तक्षेप नहीं कर समाज वैज्ञानिकों की राय को महत्वपूर्ण समझना चाहिए।

2. स्कार्फ एक न्यूनतम सामान्य स्वीकार वस्त्र है जो हिजाब और स्कार्फ दोनो की कमी पूरी करता है।

3. शिक्षा धर्म और संस्कृति से निरपेक्ष होनी चाहिए और इसमें मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए ताकि शिक्षा की महत्ता समझी जा सके।

4. भीड़ को यह अधिकार देना लोकतंत्र के लिए ही नहीं किसी भी शासन व्यवस्था के लिए उचित नहीं है कि वो तय करे ,क्या पहने क्या नहीं! व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार में दखलंदाजी नहीं होनी चाहिए। हिजाब विवाद महिलाओं के व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन भी हो सकता है!

5. सरकारें न्यूनतम सामान्य संस्कृति और नियम बनाए जो राष्ट्रीय चरित्र के लिए अनुकूल हो।

6. सामुदायिक पहचान एकता में बाधक है जो प्रत्येक जगह उचित नहीं है।

7. अल्प संख्यकों को मुख्य धारा में शामिल करने के लिए शिक्षा और प्रगति के अवसर समान रूप से मिलें यह सुनिश्चित हो।


निश्चित रूप से दुनिया में पहचान संबंधी समस्याएं बड़ी हुई हैं और भारत में भी।

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मीडिया, राजनीति और सांस्कृतिक पतन


टिप्पणियाँ

  1. हिजाब विवाद पर बहुत शानदार आलेख लिखा है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और यहां पर प्रत्येक व्यक्ति को अपनी धार्मिक पहचान बनाए रखने की छूट है। किंतु किसी धार्मिक पाखंडवाद को स्थान नहीं मिलना चाहिए।

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