मानव मस्तिष्क अदभुत है। समाज, संस्कृति, राजनीति, अर्थव्यवस्था, अनुसंधान और आविष्कार ,ज्ञान का सृजन और एकत्रीकरण तथा ज्ञान का उपयोग इत्यादि तमाम चीजें मानव मेधा की उपज हैं।
हममें से कुछ बहुत अच्छा करते हैं और कुछ असफल रह जाते हैं। कुछ सरल और बेहतर जिंदगी जीते हैं तथा कुछ परेशानियों और तनाव में जिंदगी गुजार देते हैं।
एक परीक्षा में लाखों अभ्यर्थी बैठते हैं लेकिन कुछ ही सफल हो पाते हैं।
इस अंतर के लिए कौन जिम्मेदार है?
प्रकृति,समाज या इंसान खुद ?
अगर प्रकृति को दोष दें तो वो सिर्फ भेदभाव करती है बीमारियों में या जेनेटिक बनवाट में। बाकी अधिकांश जगह सामाजिक, आर्थिक स्थिति जिंदगी के हरेक निर्णय में महत्वपूर्ण होती है।
अगर जन्मजात बीमारियों को छोड़ दें तो मानसिक स्वास्थ्य पर केवल और केवल परिवार तथा सामाजिक सांस्कृतिक और आर्थिक परिस्थितियों का प्रभाव पड़ता है।
क्या बोलना और कैसा सुनना पसंद है! खाना -पीना और भाषा तथा क्रिया प्रतिक्रिया ,भावुकता ,तनाव, उत्तरदायित्व की भावना, रिश्तों के प्रति विश्वसनीयता ,जीवन शैली, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता ,इच्छा शक्ति, आत्मविश्वास, धैर्य ,सत्य निष्ठा, न्यायप्रियता, पक्षपात पूर्ण व्यवहार, सक्रियता, सामाजिकता इत्यादि पारिवारिक, सामाजिक,आर्थिक, सांस्कृतिक परिस्थितियों से निर्धारित होते हैं। इसलिए इनमें परिवर्तन संभव है। इसीलिए शिक्षण तथा प्रशिक्षण से सोच बनाई और बिगाड़ी जाती है।
आतंकवादी आत्मघाती हमलावर तैयार कर सकते हैं और राष्ट्र आत्म बलिदान के लिए सैनिक, महान शिक्षक चाणक्य चंद्रगुप्त, अरस्तू सिकंदर महान तैयार कर सकते हैं। इसी तरह राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण से सुकरात,बुद्ध,गांधी विलियम शेक्सपियर, कालीदास, मुंशी प्रेमचंद चे ग्वेरा , फिदेल कास्त्रो ,मार्क्स, सिकंदर, इंदिरा या फिर हिटलर बनते रहे हैं।
जाहिर है आप अपने बच्चे को डाकू बना सकते हो या महान आदर्श । इसका एक अभिप्राय यह भी है कि आप बिगड़ी हुई परिस्थितियों को बदल सकते हो।
खोया आत्म विश्वास हो या आपकी छवि या प्रतिष्ठा या आपके मनोवेगों पर नियंत्रण करना हो। यह सभी हम पर निर्भर है।
कुछ बच्चे अनुशासन प्रिय और कुछ निरुत्साही तथा नकारात्मक व्यवहार पसंद वाले, ये सभी पारिवारिक, सामाजिक, स्कूली परिवेश की पैदाइश हैं।
गरीबी और विपरीत काम की परिस्थियां, बचपन के बुरे अनुभव इत्यादि अनेक कारण हैं जो मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
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निश्चित रूप से पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक हालात प्रभावित करते हैं। जिंदगी के सभी निर्णय पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक स्थिति से बने हालातो से प्रभावित मासिकता से लिए जाते हैं। हरेक निर्णय में इनकी छाप होती है।
1. आप कैसे बैठते हैं।
2. आप क्या सवाल करते हैं?
3. आप किसने दोस्ती करोगे!
4. आप कैसा व्यवसाय करेंगे?
5. आप कितने बड़े सपने देखेंगे।
6. आप कितना और क्या पढ़ेंगे।
7. आपके कपड़े और आप के जूते
8. आपकी आदतें जैसे उठना, बैठना, भाषा और व्यवहार
9. आपकी पसंद
10.आपका नजरिया
जिंदगी की कुछ घटनाएं दिशा बदल देती हैं। वो दिख सकती हैं या अदृश्य प्रभाव डाल सकती हैं। एक ही परिवार या परिवेश के बच्चों और इंसान में भी अंतर होता है ! जिसके लिए बहुत छोटे छोटे मनोवैज्ञानिक कारण होते हैं जो सामाजिक मनोविज्ञान की विषय वस्तु है।
मानसिक स्वास्थ्य और आत्म विश्वास दो अलग अलग अवधारणाएं हैं। दोनो को समझना जरूरी है।
आत्मविश्वास एक स्वस्थ मस्तिष्क की वह स्थिति है, जो मानसिक व आध्यात्मिक प्रेरणा, उत्साह, खुशी, जुनून, ऊर्जा तथा शारीरिक स्फूर्ति उत्पन्न करती है । इससे व्यक्ति स्वयं को विपरीत परिस्थितियों पर नियंत्रण करने में सक्षम महसूस करता है।
मानसिक स्वास्थ्य एक बड़ी संकल्पना है जिसमें हमारी संतुलित सोचने समझने की क्षमता ,सोचने का तरीका ,निर्णय क्षमता , संबंधों से लेकर निजी कार्यों तक का उचित दृष्टिकोण शामिल हैं। खुद पर नकारात्मकता हावी न होने देने से लेकर डिप्रेशन और अन्य मानसिक बीमारियों से मुक्त होना शामिल है।
शारीरिक स्वास्थ्य की तरह ही मानसिक स्वास्थ्य महत्वपूर्ण है। बल्कि मेंटल हेल्थ शारीरिक स्वास्थ्य से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। जिस प्रकार शारीरिक बीमारियां और व्याधियां हमारे हरेक पक्ष को प्रभावित करती हैं वैसे ही मानसिक अस्वस्थता भी प्रभावित करती है।
*सुनना, कहना,पढ़ना और जानना वास्तविक नॉलेज नही है।*
नॉलेज वो है जिस जानकारी का लाभ उठाया जाए और सक्षमता हासिल की जाए।
आत्म विश्वास को ही लीजिए !
आत्म विश्वास के लिए बहुत सुनने को मिलेगा लंबे भाषण, प्रेरक गाथाएं लेकिन फिर भी कुछ ही लोग क्यों मोटिवेट होते हैं।
इसकी वजह है आत्मविश्वास का मतलब नही समझना,अकर्मण्यता और सतही सोच।
अरस्तू के अनुसार ज्ञान को जब तक आप अंगीकार नही करेंगे तब तक कि खुद महसूस नहीं कर लेते। इस समझ के बाद ही ज्ञान का उपयोग कर सकते हो।इसलिए बहुत पढ़ने और बहुत बड़े बड़े लंबे मोटिवेशनल भाषण सुनने के बाद भी बड़ी संख्या में मोटिवेट नही हो पाते हैं, क्योंकि वो खुद महसूस नहीं कर पाते तथा ज्ञान का उपयोग करने में असक्षम होते हैं।
इसलिए कुछ मूल बातों को समझना जरूरी है जिनकी पूर्व आवश्यकता आत्मविश्वास के लिए आवश्यक है।
पूर्व आवश्यकताएं
1* उलझनों में न रहें , समानांतर प्रयास करें।
कभी कभी कुछ समस्याएं तत्काल नही सुलझती ऐसे में उन्ही में न उलझे ,अन्य समांतर कार्यों और उद्देश्य के लिए प्रयास करते रहें ,इससे आप ना उम्मीद नहीं होंगे।
2* कुछ कार्य तत्काल नही पूरे होते , इसलिए सब कुछ उसी स्थिति पर न्योछावर न करें।
3* आपको जानकारी जरूर होने चाहिए, बिना जानकारी आप कुछ नही कर सकते। इसलिए आत्म विश्वास तभी सच में होगा जब आपको जानकारी होगी। आप परीक्षा में सफल होने के प्रति आश्वस्त तब होंगे जब आप को मालूम होगा क्या पढ़ना है और कितना तथा आप पढ़ सकते हो या नहीं!
आप दौड़ में तभी जीतोगे जब आप भाग लोगे और भाग तभी लोगे जब आपको खुद पर यकीन होगा। खुद पर यकीन जब होगा जब आप खुद को जानोगे, दौड़ के नियम और अपनी क्षमताओं जानोगे।
4* सामाजिकता विकसित करें जिससे आपको सोचने ,समझने और विकल्प खोजने में अधिक जानकारी और सहायता मिलेगी। सीमित विकल्प से आत्मविश्वास कमजोर होता है।
5* संसाधनों की उपलब्धता और जुटाने में सक्षमता तथा संसाधन निर्मित करने की क्षमता।
आप किसी जंगल में गए और आपके पास खाने को नही ।
कमजोर दिल वाला इसी चिंता में मारा जाएगा कि अब वो क्या करेगा ??
लेकिन आत्मविश्वासी व्यक्ति चलता रहेगा और साथ ही सीमित समय में ,सीमित उपलब्धता में विकल्प खोजेगा। जाहिर है आत्म विश्वास रखने वाला मुश्किल हालात में मानसिकता मजबूत रख केंद्रित रहेगा न कि चिंता में ऊर्जा गवाएंगा। ऐसा हो खेल में और ऐसा ही परीक्षा देते समय या तैयारी करते समय होगा।
*कुछ सत्य घटनाएं और विजय गाथाएं*
कई मामलों में मानसिक स्वस्थ व्यक्ति शारीरिक अस्वस्थता को भी दरकिनार कर परिस्थितियों पर जीत हासिल करता है। अनेक उदाहरण हैं जैसे अरुणिमा सिन्हा , प्रीति बेनीवाल ,अवनी लेखरा इत्यादि ने विपरीत शारीरिक हालातों के बावजूद बेचारी बन कर रहने के अपनी कमजोरी को ही हथियार बन कर मजबूत पक्ष बनाया।
अरुणिमा सिन्हा 2011 में लखनऊ से देहरादून आ रही थी। लुटेरों ने ट्रेन में सोने की चैन और बेग छीनने के लिए चलती ट्रेन से नीचे धक्का दे दिया जिससे उसका एक पैर कट गया और पूरी रात कड़ाके की ठंड में पटरियों पर जिंदगी और मौत से लड़ती रही। बाद में किसी ने अस्पताल पहुंचाया। उसके बाद अरुणिमा ने अपने हौसले से हिमालय फतह किया जबकि स्वस्थ व्यक्ति भी हिम्मत नही कर पाता। यह सब इच्छा शक्ति और मानसिक सकारात्मकता से संभव हुआ।
एक और कहानी प्रीति बेनीवाल की - 2016 में एक परीक्षा देने जाते समय पैर फिसलने पर ट्रेन हादसा हो गया था ।14 ऑपरेशन और फिर बेड रेस्ट ,शादी टूट गई और जिंदगी बिखर गई। पढ़ाई में अव्वल रहने वाली प्रीति ने बेड रेस्ट की कमजोरी को ही मजबूती बनाई और बिना कोचिंग के उसी बेड पर पढ़ाई शुरू की तथा यूपीएससी में हाल ही में सिविल सेवा में 754 वे स्थान पर चयन हुआ।
जोधपुर की एक सफाई कर्मचारी महिला भी ऐसे ही विपरीत परिस्थितियों से जूझते हुए राजस्थान प्रशासनिक सेवा में चयनित हुई। आशा का भी विवाह संबंध टूट गया था और आर्थिक कठिनाइयों से सामना करने के लिए सड़क पर झाड़ू निकालना तक मंजूर किया और बचे समय में पढ़ाई की।
इसलिए मानसिक स्वास्थ्य को व्यक्तित्व की कुंजी कहा जा सकता है।
जिस प्रकार मौसम परिवर्तन से अनेक मौत होती हैं लेकिन हम निष्फिक्र हो कर सकारात्मक ढंग से रहते हैं वैसे ही चुनौती आने पर उसको जीवन का भाग समझ कर सामना करना चाहिए। यह सोच बचपन से बननी चाहिए। स्वभाव में धैर्य और संयम धारण करना चाहिए और इसको अभ्यास का विषय समझ कर दैनिक जीवन में स्थान दिया जाना जरूरी है।
मानसिक स्वास्थ्य में बहुत सारी बातें हैं। हमारा वातावरण, सामाजिक आर्थिक परिस्थितियां इत्यादि।
पारिवारिक, सांस्कृतिक और आर्थिक स्थितियों से अनेक मनोग्रंथि बनती हैं।इन मनोग्रंथियों से हमारा व्यवहार, भाषा, आवश्यकताएं और आवेग तथा सांवेग बनते बिगड़ते हैं।
जैसे हम अंत वस्त्र सीधे कर के पहनते हैं। उल्टे पहने तो क्या होगा? जिस चीज का अभाव है उसका बार बार ध्यान आता है और मिलने पर टूट कर पड़ते हैं। नही मिले तो क्या होगा?
ट्रेन रुकने से पहले ही बराबर दौड़ लगाते हैं! सीट नही मिली तो क्या होगा? पैसा कम है लेकिन गाड़ी लेनी है ,नही पैसे मिले तो क्या होगा?
यह कुछ वैसा ही है जैसे बचपन में खिलौना किसी दूसरे बच्चे के हाथों में देख कर जिद करते हैं। यह मनोवृत्ति बड़े होने तक भी नही बदलती।
कभी कभी जब हम प्रतिस्पर्धा का सामना करते हैं तो घबरा जाते हैं।
परीक्षा के समय हम सामान्य नही रहते हैं। साक्षात्कार के समय इसी बात पर विचार करते रहते हैं कि "क्या पूछेंगे!"
हम स्वाभाविकता छोड़ देते हैं और खुद से कोई और बनना चाहते हैं। "परफेक्ट!" हां बिलकुल। यह जानते हुए कि दुनिया में कोई परफेक्ट नही है हम उस समय विशेष में खुद को कोषते हैं ,काश "यह पढ़ लिया होता!" "काश पहले मैंने ऐसा किया होता।"
आपके आस पास के थोड़े से सक्षम लोग भी दबाव बनाते हैं। "तुमने पहले ऐसा क्यों नही किया!" "तुम ने ऐसा किया होता ! अब क्या होगा!"
एक ऐसा वातावरण बन जाता है आपकी वजह से कि आपका स्वत्व खत्म होने लगता है। आपके लिए उस चीज के प्रति भय उत्पन्न हो जाता है जो सीमित है। और आप वो सब करने लगते हो जो नही करना चाहिए और बिलकुल गैर तार्किक और बेमतलब का होता है।
जरा सोचिए दौड़ में लाइन में खड़े हो! अब विश्ल का इंतजार कर रहे हो! आपको दौड़ना है। लेकिन आपके दिमाग में ख्याल आ रहा है : "मै पीछे रह गया तो!" "मैं थक गया तो!" "मेरी सांस उफान पर आ गई तो!" ऐसा खयाल आते ही आपका दिल धड़क धड़क कर मुंह को आने लगता है। आपके पैरों में सुन्न और आंखों के सामने से लक्ष्य गायब हो जाता है।
ऐसे हालत में आप दौड़ जीतने की उम्मीद करते हो? आप दौड़ भी नही पाओगे!
परीक्षा के समय भी ऐसा ही होता है।
इसी विषय पर आपको तनाव प्रबंधन विषय पर चर्चा करनी है।
मारवाड़ी व्यवसायी भारत के हर कोने में अपनी खास पहचान रखते हैं। वो मारवाड़ से मोह छोड़ बाहर निकले।
अंग्रेज दुनिया पर राज कर पाए क्योंकि उन्होंने जगह छोड़ी।
नई दुनिया या भारत की खोज हुई और दुनिया में नया राजनैतिक नक्सा बना। दुनिया पर कब्जा करने की प्रतिस्पर्धा हुई।
अफ्रीकी मूल के अनेक देशों में अफ्रीका के बजाय प्रवासी देशों में अब अच्छी स्थिति में हैं।
भारत के मूल लोग फिजी, मोरिसस, वेस्ट इंडीज देशों में आज बेहतर उपस्थिति रखते हैं। कनाडा में सिख समुदाय तभी प्रगति कर पाया जब वो भारत छोड़ कर गए।
इसलिए जड़ें जमाना और यह उम्मीद करना कि हम प्रगति करें!यह असंभव नहीं तो बहुत मुश्किल जरूर है।
कृषक समुदाय की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि वो जड़ों से जुड़ा रहना सहज मानता है और इसको प्रतिष्ठा तथा सम्मान के आवरण से मजबूत जंजीर का रूप दे कर सुरक्षित महसूस करता है जिससे उसकी पीढ़ियां भी समाजीकृत होते होते अंगीकार कर लेती हैं तथा परिवर्तन के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण बना कर एक दायरे में सिमटना स्वभाव का भाग बना लेता है।
यही वजह है कि कृषक समुदाय और इनसे संबंधित अन्य समुदायों में परिवर्तन की गति धीमी होती है। सामाजिक परम्पराओं के बंधन अधिक मजबूत होते हैं । जीवन अधिक कठिन हो तो भी सामाजिकता अधिक महत्वपूर्ण होती है।
इसलिए वैचारिक परिवर्तन की परिस्थितियां बनाना अति आवश्यक होता है।
महिलाओं और बालिकाओं पर सामाजिकता का अधिक दबाव होता है साथ ही मान सम्मान से अधिक जोड़ा जाता है। बच्चों पर मां का प्रभाव सबसे अधिक और प्रभावी होता है। "एक योग्य पिता के अयोग्य संतान हो सकती है लेकिन एक योग्य माता के अयोग्य संतान नहीं होती है।"
माता का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य जितना बेहतर उतना ही बेहतर नागरिक होता है। सकारात्मकता के लिए महिलाओं को सकारात्मक वातावरण और अवसर मिलना अति आवश्यक है।
मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में महिलाओं की स्थिति गंभीर है।
अनेकों दबाव और जिम्मेदारियां तथा अति सावधानियां रखना तथा खुद को समय नही देने से वो मशीनवत हो जाती हैं।
तो क्या हम परिस्थियों के पराधीन हैं?
हां बिलकुल, लेकिन नही भी।
कुछ निर्णय और घटनाएं जिंदगी बदल देती हैं।
परिवार और सामाजिक तथा आर्थिक हालातों से बिलकुल भिन्न शख्शियत बन जाते हैं कुछ लोग।
1. कार्यों के प्रति अनैच्छिक होना।
2.व्यक्ति की रचनात्मकता या क्रिएटिविटी कम होना।
3.अव्यवस्थित अस्त व्यस्त जीवन
तथा कार्य ,तनाव, चिड़चिड़ापन व मानसिक अस्वस्थता ।
5.सामाजिक समायोजन में कठिनाई
व मित्रों से दूरी ।
6.निर्णय लेने की क्षमता कम हो जाती है ।
7.थकान, पक्षाघात, थायराइड ,कैंसर, हृदय रोग इत्यादि बीमारियां हो जाती हैं।
8.व्यक्ति में हीनता का भाव उत्पन्न होता है ।
9.लंबे समय तक कम आत्मविश्वास से हीनता ग्रंथि स्थाई रूप ले लेती है।
10. पारिवारिक तनाव ।
11.समायोजन तथा बच्चों का समाजीकरण प्रभावित होता है।
12.सामान्य कामकाज अधूरा रहता है।
अव्यवस्थित जीवन हो जाता है। 13.व्यक्ति डिप्रेशन में रहने लगता है और उसे अगली विफलता सामने दिखाई देती है ।
14.शारीरिक सक्रियता में कमी हो जाती है।
1.आपकी वह खूबी कागज पर लिखें, जो कभी आपने किसी के साथ अच्छा किया है या जिसने आपको सफलता दिलाई हो।
2.आप स्थान परिवर्तन कीजिए ।
3.कार्यों को व्यवस्थित तरीके से कीजिए।
4. छोटे छोटे लक्ष्य ले और उन्हें पूरा करें।
5. व्यायाम और योग अभ्यास करें।
6.अपने अंदर के खुद के प्रति जो नकारात्मक भाव है या विचार है उन से लड़े और यह माने कि सभी आपकी तरह ही होते हैं ।
7.अपने सबसे नजदीकी के साथ मिलिए बातचीत कीजिए।
8.जिन लोगों से आप डरते हैं उनसे मिलिए बार बार मिलने से अभ्यास उत्पन्न होता है।
9.स्टेज पर खड़ा होना सीखिए धीरे-धीरे आप चाहे छोटे-छोटे कथन बोलिए इससे सामने आने में झिझक खुलती है ।
10.अपनी परेशानी अपने नजदीकी मित्रों से शेयर कीजिए ।
11.जब भी किसी से मिलने जाएं पूर्व प्लान करके जाएं और क्या बात करनी है उन्हें तय करके जाएं ।
12.किसी कार्य को बार-बार करें।
13.कोई परफेक्ट नहीं होता है जिंदगी के हर एक पक्ष में सभी सफल नहीं होते हैं ।
15.नए तरीके आजमाए और फिर से कोशिश कीजिए ।
16.बार-बार कोशिश करने से परफेक्ट में उत्पन्न होती है ।
17.जिस चीज से आप डर रहे हैं उसका सामना कीजिए।
आप भी आजमाइए और परिवर्तन देखेंगे।।
Shandar 👍👍
जवाब देंहटाएंThank you sir
हटाएंशानदार सर जी
जवाब देंहटाएंThank you krishan
हटाएंVery nice 👍
जवाब देंहटाएंVery nice 👍
Thank you sir
हटाएंsuperb sir ji
जवाब देंहटाएंआत्मविश्वास का बहुत ही सही तरीके से प्रायोगिक उदाहरण सहित जमीनी स्तर पर बहुत ही सरल, स्पष्ट विश्लेषण
जवाब देंहटाएंSelf-confidence is the key of every success..
Bahut achha lekh hai
हटाएंGreat guru dew ji
जवाब देंहटाएंThank you
हटाएंThis was very helpful sir.
जवाब देंहटाएंBahut hi sandar guru ji
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लेख सर ।
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