नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अच्छे बुरे पक्ष
पिछले लेख में मैने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर जानकारी साझा की थी।
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नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 क्रियान्वयन, चुनौतियां
इस आलेख में उन पक्षों को रखने का प्रयास किया है जो आधुनिक होते भारत और दुनिया में भविष्य में होने वाले परिवर्तनों के संबंध में या तो अनछुए रह गए या फिर भारतीय समाज पर नकारात्मक प्रभाव डालेंगे। अंत में उन पक्षों को रखने का प्रयास किया है जो सकारात्मक है।
1* सामाजिक - आर्थिक संदर्भ में कमजोर पहलू
क*. निजीकरण और शिक्षा अंतराल , ये दोनो मिल कर ग्रामीण और पिछड़े समाजों के लिए बड़े नुकसानदायक साबित होंगे। मल्टीपल एंट्री और एग्जिट शिक्षा के संदर्भ में वैसा ही मजाक है जैसा covid 19 काल में करोड़ों बच्चों की पढ़ाई बर्बाद हो गई और ऑनलाइन पढ़ाई का लाभ एक सीमित वर्ग तक सिमट गया। लेकिन ऑनलाइन पढ़ाई का ढोंग खूब हुआ।
सक्षम, और सक्षम हुआ तथा पिछड़ों के जबरदस्त धक्का लगा।
ख*. कोई बच्चा मजबूरी में एक बार पढ़ाई छोड़ कर काम करने लगा तो वापस वो शिक्षण कैंपस में आ सकेगा ! इस पर संदेह है। यह ए.सी. में बैठ कर कागज काले करने वालों का लिखा गया, सहूलियत वाला सुलेख जैसा प्रतीत होता है।
ग*. अंग्रेजी प्रणाली में बाबू तैयार होने का आरोप लगा रहे थे । अब इस प्रणाली से छोटे और सस्ते मजदूर पैदा होंगे।
घ*. कक्षा 8 से ही व्यवसायिक पाठ्यक्रम प्रारंभ किया जाएगा। इसका मतलब साफ है, ज्यादातर गरीबी, मजबूरी, उबाऊ पढ़ाई और बच्चों की बाहरी आकर्षण में रुचि से पढ़ाई छूटेगी। वो ज्यादातर तकनीकी या रिपेयर का छोटा मोटा ज्ञान प्राप्त कर मजदूरी के लिए ड्रॉप आउट होंगे।
य*. वर्तमान में हमारा भारतीय समाज का एक छोर 1970 पर खड़ा है और दूसरा 2021 में। अंतराल 50 साल का है।
यह अंतर कम होना चाहिए था , निम्न तबका 1970 से आगे 1990 तक की स्थिति में पहुंचना चाहिए , लेकिन यह गैप अब ज्यादा बढ़ेगा। 2030 तक आते आते 1975 और 2030 का अंतर हो जाएगा। मतलब 55 वर्ष हो सकता है।
संपत्ति केंद्रीकरण निश्चित रूप से बढ़ेगा। टॉप अमीर बढ़ेंगे, जिस पर हम खुश हो सकेंगे। लेकिन निचले स्तर पर संदेहास्पद होगा संपत्ति का तेज सर्कुलेशन।
र*.राजनीति में कमजोर तबके से ऊंचे दर्जे का नेतृत्व विकसित होना ज्यादा मुश्किल होगा। अमेरिका की तरह बड़े अमीर लोगों में ही चुनाव पर व्यय करने की क्षमता होगी और उच्च पदों पर पहुंचना उनके लिए आसान होगा।
यद्धपि निजीकरण से यह स्थिति पहले ही क्रिएट होने लगी है।
ल. बाल श्रम में बढ़ोतरी देखी जा सकेगी।
2* वैचारिक दृष्टि से कमजोर पहलू
क*. निम्न तबके से प्रतिभाओं का आगे आना रुक जाएगा और मानसिक विकास और कम समझ विकसित हो पाएगी। क्योंकि अधिकांश पहले ही अल्प टेक्निकल हो, ड्रॉप आउट हो चुके होंगे।
ख*. नई शिक्षा नीति में "कैसे सोचें" इस पर फोकस किया है। मतलब यह केंद्रीय एजेंसी तय करेगी कि भारत के नागरिक अब अपनी सांस्कृतिक, सामाजिक पारिस्थितिकी से भिन्न नीति निर्माताओं और क्रियान्वयन करने वालों के अनुसार सोचें। इसका अभिप्राय क्या यह है कि विविधता वाली सांस्कृतिक सामुदायिक सोच को खतम किया जाएगा? राष्ट्रीय एकीकरण के लिए सांस्कृतिक एकीकरण का प्रयास माना जा सकता है। आपके बच्चों को एक संस्कृति की मान्यताएं दिमाग में ठूंसनी पड़ेंगी।
यह प्राकृतिक न्याय , मानव के मूल मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के खिलाफ है। हो सकता है सही और गलत का फर्क भी थोपा जाए अथवा लघु समुदायों की जीवंत संस्कृति निष्ठुर सांस्कृतिक आक्रमण में समाप्त होने लगेंगी। हालांकि राष्ट्रीय भावना के एजेंडे के अनुकूल हो सकती है।
ग*. अध्ययन अंतराल और व्यवसायिक पाठ्यक्रम का प्रारंभ से लागू करना! ये दोनो एक कॉकटेल का निर्माण करेंगी जिससे उच्च वर्ग और साधन सम्पन्न परिवारों के बच्चे ही उच्च अध्ययन में महारत हासिल कर सकेंगे।अंतिम रूप से उनकी सोच "ज्या के पैरों में न फटे बिवाई वा के जाने पीर पराई" की तरह बनेगी और नजरिया विकसित होगा।
घ*. विद्वान और बड़े टेक्नो क्रेट, संपन्न और सक्षम वर्ग से बनेंगे तो आधिकारिक पद और नेतृत्व भी उनके हाथो में होगा। जिनकी वैचारीकता परिवर्तन विरोधी होगी। देश में आर्थिक और सांस्कृतिक विभाजन की खाई चौड़ी हो जाएगी।
य*. बदलती परिस्थितियों में समायोजन के लिए समाज विज्ञान,कानून और दर्शन की पढ़ाई को अनिवार्य किया जाना चाहिए था। लेकिन इन सबके बजाए कुछ विश्व विद्यालय धर्म ग्रंथ पढ़ना शुरू करेंगे, जो सत्ता के अनुकूल होंगे। हो सकता है धीरे धीरे धर्म निरपेक्ष मूल्य की दुहाई दे कर सभी संस्थान, अपने अपने आधार पर अलग अलग धर्मों के धर्म ग्रंथ पढ़ाने शुरू कर दें। यह राष्ट्रीय भावना के समावेशी विकास के विपरीत स्थिति होगी।यह मार्ग भटकना होगा। तर्क और वैज्ञानिकता तथा बदलते समाज की आवश्यकताओं के अनुकूल नहीं होगा।
3* शिक्षक और प्रशासनिक दृष्टि से कमजोर पहलू
क*. पूरी नीति में शिक्षक को जगह नहीं दिया है। जाहिर है शिक्षक एक कर्मचारी रहेगा और उसकी प्रतिबद्धता निश्चित समय और स्थान तक शासकीय आदेशों तक रहेगी। जब बात गुरुकुल बनाने की करते करते शिक्षक को महत्व नही दे कर शिक्षा के एक बड़े पक्ष को अनदेखा किया गया।
ख*. शिक्षा में प्रशासनिक तंत्र पर कोई ध्यान नही दिया गया। अगर वर्तमान ब्यूरोक्रेसी पर आधारित रहा गया तो नया कुछ नही सिवाय नाम के। शिक्षा में एडमिनिस्ट्रेशन अलग हो और शिक्षा के क्षेत्र से ही होना था।
ग*. उच्च शिक्षा में भी प्रशासनिक प्रबंधन शिक्षा से संबंधित कैडर से होना बेहतर होता।
घ*. शिक्षा का केंद्रीकरण करना व्यवस्थागत बाधा बनेगा। राज्यों और फिर निचले स्तर पर उत्तरदायित्व को अनदेखा किया गया है। प्रबंधन और क्रियान्वयन दोनो में यह तकनीकी खामी है। नई शिक्षा नीति और ढांचा वही ! मतलब "नई बोतल में पुरानी शराब"
नई शिक्षा नीति में काफी सारे अच्छे पक्ष भी हैं।
1* निचले स्तर पर रोजगार की मांग बढ़ेगी, स्टार्ट अप के लिए अवसर बढ़ेंगे।
2* निचले स्तर पर आर्थिक रूप से निम्न मध्यम वर्ग का विस्तार होगा।
3* लचीली शिक्षा प्रणाली से कमजोर और सामान्य बच्चे जल्दी उह पोह से निकल कर अपना रास्ता तय कर सकेंगे।
4* बढ़ती जनसंख्या की दृष्टि से लाभकारी होगा तथा डेमोग्राफिक डेविडेंट मिलने की संभावना ज्यादा होगी। सस्ते और कुशल श्रमिक उपलब्ध होने से निवेश अधिक हो सकेगा।
5* संकाय व्यवस्था समाप्त होने से समानांतर रूप से समाज विज्ञान के क्षेत्र में प्रतिभाओं का विकास हो सकेगा।
उक्त विश्लेषण से मुझे लगता है ,नई शिक्षा नीति में बदलाव और सुधार की जरूरत है। समय समय पर अवलोकन होता रहेगा और संतुलित प्रणाली विकसित हो सकेगी।
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superb analysis sir ji
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