*फाल ऑफ काबुल :सांस्कृतिक संघर्ष या साजिश और भारत तथा एशिया , भाग_ 3*
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सभ्यताओं का संघर्ष और या कृत्रिम युद्ध
आप दो तस्वीर देखिए एक अफगान राष्ट्रपति सूट बूट में शान से विमान में जाता है और पीछे मुड़ कर हाथ हिला कर अभिवादन कर रहा है जैसे वो किसी मिशन पर जा रहे हो और साथ में धन ले गए।
उनके रक्षक और अभिवादन स्वीकार करने वाले कौन और कैसे थे? दूसरी तस्वीर में कबिलाई लोग तालिबानी दिख रहे है। ये आधुनिक हथियारों और गाड़ियों में लदे पुराने पहनावे और दाढ़ी में खुद को इस्लाम का पैरोकार दोगलेपन से साबित कर रहे है।क्या यह दो भिन्न संस्कृतियों का युद्ध है या टकराव या कुछ और?
अमेरिकी विद्वान सैमुअल पी हटिंगटन ने एक अवधारण दी जो सांस्कृतिक संघर्ष या सभ्यताओं के संघर्ष के नाम से जानी जाती है। *इस्लाम बनाम शेष दुनिया* का परसेप्शन का राज इसी अवधारण में छुपा हुआ है।
मै इस अवधारणा को जान बूझ कर बनाई गई और "वैचारिक वायरस" के रूप में मानता हु और पूरी संभावना के रूप में देखता हु कि यह अवधारणा साजिसन रची गई है। वास्तव में जब हम एक शब्द और अवधारण किसी के बारे में बनाते है तो तत्काल वैसी ही प्रतिक्रिया होती है और हम उसका प्रतिउत्तर उसी अंदाज में देते है। उसके बाद स्थाई रूप से वैसी ही छवि बन जाती है। मेरी आशंका आंशिक गलत हो सकती है लेकिन कुछ ऐसे तथ्य है जिनसे माथा ठनक सकता है।
इससे पहले की मध्य पूर्व के आतंकी संगठनों और अफगानिस्तान की बर्बादी तथा शेष दुनिया पर प्रभाव समझें ।
यह पहले जानना जरूरी है कि सैमुअल पी हटिंगटन पर संदेह क्यों है?
१* हटिंगटन अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर के समय व्हाइट हाउस में नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के लिए सुरक्षा योजना के समन्वयक थे।
२* हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर इंटरनेशनल अफेयर्स के निदेशक थे।
३* 1980 के रंग भेद के दौरान पी बोथा के सुरक्षा सलाहकार रहे।
४* सभ्यताओं के संघर्ष के लिए 7 सांस्कृतिक समूहों को चिन्हित किया जिनमे *हिंदू, जापानी, लातीन अमेरिकी, चीनी, पश्चिम,इस्लाम, रूढ़ी वादी ईसाई* थे। इनमे से इस्लामिक और लैटिन संस्कृति को टारगेट प्रथम किया गया और यहां आज भी अशांति और अमेरिकन दखल है।
५* अवधारणा का समय 1993 अर्थात शीत युद्ध की समाप्ति के बाद।
हटिंगटन का स्पष्ट मानना था कि अमेरिका को संभावित खतरा इन 7 समूहों में से ही होगा और समय रहते इनको कमजोर किया जाए।
यह *"खतरा आने से पहले का खतरा"* ज्यादा महसूस होता है क्योंकि अधिक संभावना है कि यह *"कृत्रिम खतरा"* रचा गया और फिर वास्तविक खतरा बनाने के लिए ईरान, इराक युद्ध, इराक का पतन, लादेन की पैदाइश, आईएसआईएस का उदय और तालिबान का पोषण अमेरिका द्वारा किया गया।
*क्यों ? इससे एक साथ चार उद्द्येश पूरे हो रहे थे।*
१* चीन, हिंदुस्तान,रूस पर नियंत्रण।
२* संभावित इस्लामिक एकता ( वास्तव में एकता होती ही नहीं कभी क्योंकि कबिलाई समाज एक जुट नही हो सकते ) को रोकना और आर्थिक संसाधनों पर कब्जा।
३* किसी नवीन महाशक्ति के संभावित उदय को रोकना और पश्चिम पर नियंत्रण।
४* हथियारों की खपत बढ़ाना और आर्थिक साम्राज्य स्थापित करना।
आखिर यह सब बताने का।
*लेकिन क्या इस्लामिक सभ्यता मासूम है?*
बिल्कुल नही , कोई भी इंसान या इंसानी समूह मासूम और निरपराधी नही होता जब तक कि वो सक्षम नहीं होता है।
*सैमुअल हटिंगटन को संदेह क्यों हो सकता है?*
१*मध्य एशियाई समाज और मध्य पूर्व हमेशा संघर्षरत रहे है और इस्लाम का उदय विषम भौगोलिक और सीमित संसाधनों वाले भौगोलिक प्रदेश में हुआ है जिससे हिंसक प्रवृत्ति स्वाभाविक रही है।
२* एशिया और मध्य भाग, जातीय और कबिलाई समाज रहा है जो आसानी से न तो एक होता है और न प्रजातांत्रिक सरलता से हो सकता है।
३* इस्लामिक संस्कृति में राजनीति और धर्म में निकट संबंध है और प्रथकता से अभी तक परहेज करते है। ये विशेषीकरण के खिलाफ है जिससे पूंजीवाद के खिलाफ खतरा उत्पन्न हो सकता है।
४* तेल कुओं के कारण ताकतवर इस्लामिक राज्य बन सकता था जो संभावित खतरा हो सकता है।
*लेकिन अफगानिस्तान से क्या संबंध है?*
दर असल अफगानिस्तान की बर्बादी शीत युद्ध से शुरू हुई और उसका इस्तेमाल इस्लामिक देशों के विरुद्ध किया गया।
*आखिर अफगानिस्तान ही क्यों?*
*"अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति चीन, सोवियत यूनियन, इस्लामिक देशों और भारत के मिलन केंद्र पर होना ही दुर्भाग्य का कारण है।"*
यहां कोई संसाधन नही है फिर भी इतिहास में देख लो और वर्तमान तक सभी की नजर इस पर है और अनेकों युद्ध के लिए यही स्थल चुना गया है। तुर्की आक्रमण कारी, यूनानी ,मंगोलियन , आर्यो, शक, हूण इत्यादि का प्रथम डेरा और युद्ध स्थल यही भूमि रही है ,क्योंकि यह सभी संस्कृतियों और राज्यो का प्रवेश द्वार रहा है।
अभी अफगानिस्तान पर जो स्थति है उसके संबंध में विमर्श पूरा नहीं हुआ है लेकिन उससे पहले यह ज्यादा जरूरी लगा कि आखिर काबुल पतन के क्या प्रभाव और परिणाम होंगे ! भारत के संबंध में चर्चा करने से पूर्व शेष दुनिया के बारे में भी विमर्श जरूरी है ताकि अधिक अच्छे और स्पष्ट तरीके से भारतीय संदर्भ में समझ बढ़े।
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*एशियाई भू राजनीति और सांस्कृतिक वातावरण पर प्रभाव :*
१* चीन और पाकिस्तान अधिक प्रभावशाली तरीके से एशिया में विदेशी मामलों में दखल करेंगे ,हालांकि पाकिस्तान की ओकात इतनी बड़ी नही है लेकिन चीन के साथ व्यापारिक संबंधों का एक रास्ता और उपलब्ध हुआ है। भारत पर सामरिक तनाव थोपा जा सकता है।
२* पाकिस्तानी आतंकी संगठन उत्साहित और मजबूत होंगे । साथ ही महत्वाकांक्षी होंगे। इससे आने वाले समय में पाकिस्तान और अंतिम रूप से भारत पर दबाव बढ़ेगा। यह देखना है तालिबान में बदलाव किस क़िस्म का है अथवा है भी या नहीं। पूर्व में घटित कंधार विमान अपहरण घटना के आलोक में ही देखना जरुरी है। कोई वजह नही है यकीन करने की।
एक बार काबिज होने के बाद ही तालिबान असली पत्ते खोलेगा।
३* मध्य एशिया में आईएसआईएस सहित अनेक आतंकी संगठन फिर से उठ खड़े होंगे और बहुत संभव है वो ज्यादा मारका हो और अधिक महत्त्वाकांक्षी हो।पाकिस्तान में कट्टरपंथी ताकते मजबूत होंगी और प्रतिक्रिया भारत में होगी। इसके आंतरिक मामलों में भी परिणाम देखने को मिलेंगे।
४* रूस ,चीन और पाकिस्तान में होड़ बढ़ेगी और अफगानिस्तान में सामान्य स्थिति आने में अधिक समय लगेगा और साथ ही गुट बाजी बढ़ेगी। हो सकता है लंबे गृह युद्ध में चला जाए।बंदर बांट तो हो चुकी।
५* अमेरिका का पराभव काल शुरू हो चुका है और चीन का उत्कर्ष काल । भारत के लिए रणनीति बदलने का समय है।
पाकिस्तानी प्रधान मंत्री अदूरदर्शी लेकिन गुप्त रूप से कट्टर है और महिलाओं के प्रति बहुत ही छिछले विचारो वाला है जिससे तत्काल तालिबान का समर्थन कर पाकिस्तान को मौत की दावत देदी है। उधर अब संपूर्ण विश्व में उथल पुथल होगी। अमेरिका चला तो गया लेकिन "दिल अभी भरा नहीं और महबूब को छोड़ने का दुख इसलिए है कि वो किसी और की न हो जाए" तर्ज पर अफगानिस्तान की और झांकता रहेगा। लेकिन अब यह भूल अमेरिका को पैर सिकोड़ने पर मजबूर करेगी और चीन का प्रभाव बढ़ेगा। मध्य पूर्व से यूरोप तक वन बेल्ट मार्ग बना कर नया खसम बनेगा। होना वही रेप है।
इस्लामिक दुनिया के विद्वानों को सोचना होगा कि वो धर्म से मुक्त हो कर तार्किक और वैश्विक सोच अपनाएं अन्यथा नित नए खसम (जोर जबरदस्ती का यार) झेलते रहे।
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*भारत पर क्या प्रभाव होंगे!*
१* जैसे जैसे कट्टरपंथी ताकते मजबूत होंगी वैसे वैसे भारत में सांप्रदायिक तनाव भी बढ़ेगा। भारत में भी अब धर्म के आधार पर सरकार प्रभावी भूमिका में होगी और राजनैतिक संस्कृति में धर्म एक आवश्यक तत्व बन जाएगा।
२* भारत सहित एशिया में विदेशी निवेश में गिरावट होगी और महंगाई बढ़ सकती है। ऐसी स्थति में बेरोजगारी और विकास दर में नकारात्मक परिवर्तन होगा। चीन लाभ की स्थति में ताकत के बल पर होगा। भारत अपनी स्ट्रैटजी में बदलाव कर लाभ लेने के लिए उदार वादी हो सकता है। लेकिन सांप्रदायिक तनाव बढ़ने की स्थति में भारत गरीबी की ओर बढ़ सकता है।
३* एशिया और भारत में महिलाओं पर अत्याचार बढ़ेंगे और चुनी हुई सरकार पर महिला अधिकारों को किनारे करने का दबाव बढ़ेगा।
४* भारत को तालिबान को मान्यता देने के अलावा कोई और ऑप्शन नहीं है क्योंकि अब तालिबान अफगानिस्तान की सच्चाई है। साथ ही लंबे समय तक अब रहेगा उसमे कोई संदेह नहीं होना चाहित।
५* वर्तमान सरकार तालिबान से अंदर खाने वार्ता कर रही है और जल्दी ही भारत का रुख तालिबान के नेतृत्व में बनी सरकार के समर्थन में होगा। हालांकि इससे भारत में छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
६* अफगानी नागरिकों को शरण मिलेगी और भारत में शरणार्थियों का दबाव बढ़ेगा। भारत में अफगानी लोग अधिक सहज महसूस करेंगे। भविष्य में वो लोग भारत के काम आयेंगे। पिछला अनुभव भी यही कहता है।
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*महिलाओं और बच्चों के संबंध में चिंता :*
पाकिस्तान में महिलाओं के प्रति अपराधो में 200% वृद्धि हुई है वहीं भारत में प्रति दिन 87 महिलाओं के साथ ब्लातकार औसतन होता है। महिलाओं के प्रति एशियाई देशों में खाशकर भारत और इस्लामिक देशों में अब भी नकारात्मक है। महिलाओं को पहचान के संकट से मुक्ति नही मिलने वाली।
*इस पर अलग से लिखना चाहूंगा क्योंकि यह बहुत महत्वपूर्ण है बड़ा विषय है।*
पाकिस्तान और मध्य एशियाई देशों में बच्चो को आतंक में धकेला जाएगा।
भारत में इस संबंध में प्रभाव नहीं के बराबर होगा।
निजी विचार
जुड़े रहिए ......
जगराम गुर्जर
असिस्टेंट प्रोफेसर समाजशास्त्र
राजकीय महाविद्यालय आसींद भीलवाड़ा
9413759887
Nice thought about this article
जवाब देंहटाएंShameless situation , seriously what is happening with Afghani,m shoked nd speech less, सभी देश मौन धारण करके बैठे है,उन्हें आगे समस्या का निराकरण करना चाहिए,विशेषतया भारत को मदद करनी चाहिए,क्योंकि कही ना कहीं इंडिया को काफी नुकसान हो रहा है,चाहे वो उद्योग की दृष्टि से,चाहे उत्पादों के आयात एवम् निर्यात से या खाद्य पदार्थो से हो , क्योंकी भारत में जम्मू कश्मीर ऐसा राज्य है जिसकी सीमा अफ़ग़ानिस्तान से मिलती है तो साफ तौर से जाहिर इंडिया के आयात के निर्यात और निर्भरता पर प्रतिकूल फर्क पड़ेगा,जरूरत है अभी मदद कि को भी हरसंभव कर सके,क्योंकि चाइना और पाकिस्तान,सीधे सीधे पूरे पर अधिकार करना चाहते है,चाहे वो समुंद्री आगमन हो या व्यापारिक दृष्टिकोण हो या है जगह अपनी जगह बनाता जा रहा है,हलकी से चूक ,तो आगामी भविष्य में इंडिया को भी काफी भयानक परिणाम देखने को मिल सकते है,सो इसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखे हुए अपने हाथ आगे करते हुऐ मदद करे और दूसरे देशों को समाहित करे।
Yes you are absolutely right, thank you for your precious feed back
हटाएंबहुत ही अच्छा लेख लिखा आपने गुरुजी
जवाब देंहटाएंमैं व्यस्त था लेकिन आपका मैसेज आने के बाद आपका पोस्ट पढ़ा बहुत ही अच्छा लगा आप से एक दरख्वास्त है की इसी मैटर में आप एक वीडियो अगर भेज सके तो हम समाचार कोटपूतली पेज से उसको जरूर लगाएंगे
जवाब देंहटाएंJi banata hu ek do din me
हटाएंVastvik vishleshan kiya hai sir
हटाएंCorrect guru
जवाब देंहटाएंएक काबिलाई संस्कृति वाले मानव समूह का राजनीतिक सत्ता प्राप्ति हेतु मानवता व मानव चेतना समझ को सिरे से खारिज कर देना मानव समुदाय के शांति व समृद्ध भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लगता है। आर्थिक संसाधनों पर कब्जे की होड़ भी एक तरह से तालिबानी मानसिकता है। दीगर बात ह आज हम इस से सहमत नही है।लेकिन इसका भी यही भविष्य ह। सम सामयिक मुद्दों पर सटीक विश्लेषण प्रोफेसर गुर्जर जी ।
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