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कट्टर हिंदुत्व से कट्टर तालिबान तक संबंध !

देवबंद से तालिबान तक: वैचारिक समानता या राजनीतिक दूरी? 🕌 देवबंद से तालिबान तक: वैचारिक समानता या राजनीतिक दूरी? भारत–तालिबान संबंध : वक्त की ज़रूरत हाल ही में अफ़ग़ानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्ताक़ी की भारत यात्रा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा बटोरी। यह यात्रा भारत–अफ़ग़ानिस्तान संबंधों को नए सिरे से देखने का अवसर प्रदान करती है। वर्षों तक दोनों के बीच संवाद सीमित रहा, पर अब भू–राजनीतिक परिस्थितियों ने दोनों को बातचीत की मेज़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। सवाल यह भी है कि — क्या तालिबान की वैचारिक जड़ें देवबंद से जुड़ी हैं, और क्या भारत को ऐसे समूह से संबंध बढ़ाने चाहिए? आइए इसे क्रमवार समझते हैं 👇 🕋 1. देवबंद और तालिबान का वैचारिक संबंध 🔸 ऐतिहासिक आधार दारुल उलूम देवबंद की स्थापना 1866 में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध धार्मिक और शैक्षणिक आंदोलन के रूप में हुई। इसका उद्देश्य था इस्लामी शिक्षा, नैतिकता और सामाजिक सुधार को पुनर्जीवित करना। 🔸 वैचारिक समानता, प्रत्यक्ष संबंध नहीं “तालिबान” शब्द का अर्थ है विद्यार्थी — उनके कई सदस...

विश्व की 29 वीं टॉप हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी एंथम इंक की डायरेक्टर बनी सरिता गुर्जर

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"फॉर्च्यून पत्रिका के अनुसार विश्व की टॉप 50 में 29 वे स्थान पर है एंथम इंक जो कि एक हेल्थ इंश्योरेंस प्रोवाइडर कंपनी है।" "कौन कहता है जमीन पर खड़े हो कर आसमान को छुआ नहीं जा सकता" "एक उड़ान की कोशिश तबियत से तो करो!" इस कथन को साबित किया है कोटपुतली क्षेत्र के एक गांव जैनपुर बास की बेटी सरिता गुर्जर ने। गुर्जर समुदाय शिक्षा की दृष्टि से काफी पिछड़ा है और अनेक रूढ़ियों से ग्रसित है। ऐसे में यह उपलब्धि समाज और देश की बेटियो के लिए बहुत बड़ी प्रेरणादायक है। सरिता ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज जोधपुर से की थी और केमिकल इंजीनियरिंग में गोल्डमेडलिस्ट रही है।  कंपनी की प्रोफाइल भी बहुत जबरदस्त है। सरिता जिस कंपनी में डायरेक्टर बनी है वो यूएसए की बड़ी हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी है जिसके 40 मिलियन सदस्य है और वार्षिक राजस्व 121 बिलियन अमेरिकन डॉलर है। यह कम्पनी फॉर्च्यून पत्रिका की टॉप 50 में 29 वा स्थान प्राप्त किए हुए है। यह गुर्जर समुदाय और देश के लिए गर्व की बात है। जब भी सरिता रावत का अमेरिका से आना होता है, क्षेत्र की बालिकाओं को ...

जनसंख्या नियंत्रण कानून की प्रासंगिकता

जनसंख्या नियंत्रण संबंधी कानून की आवश्यकता और संभावित परिणाम भारत के दूरदर्शी नेताओ ने 1952 से ही परिवार नियोजन के माध्यम से जनसंख्या नियंत्रण पर जोर दिया।  कालांतर में इमरजेंसी के बाद इस नीति का नाम बदल कर परिवार कल्याण किया गया। ऐसा भी दौर आया था जब जबरन नसबंदी की गई और जनसंख्या में बेतहसा वृद्धि देखी गई। आजकल एक खास पार्टी के समर्थक और खास विचारधारा से जुड़े लोग एक ऐसे कानून की मांग कर रहे है जिससे एक खास संप्रदाय से जुड़े लोगो की जनसंख्या कम हो जाए।  हालंकि मैने जब मालूम किया तो वो खुद भी 5/7 भाई बहिन थे और उनके पिता, दादा जी भी 5/7 भाई बहिन रहे है लेकिन उन्होंने 2 बच्चे की नीति का पालन किया है और अब परेशान और भयाक्रांत है कि उनकी जनसंख्या कम पड़ जाएगी और अमुक लोगो की ज्यादा हो जाएगी। वास्तविकता यह है कि शिक्षा, स्वास्थ्य के साधनों, नियोजन के साधनों और रोजगार से जनसंख्या स्वत कम हो रही है।  बाल मृत्युदर कम होने पर भी जनसंख्या पारिवारिक नियोजन से नियंत्रित हुई है।  लेकिन फिर भी जिस स्तर पर जनसंख्या कम होनी चाहिए थी वो नही हो पा रही और हम चीन को पछाड़ने वाले है जल्...

कांग्रेस पार्टी, समस्याएं और भविष्य

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*कांग्रेस का वर्तमान और भविष्य* केंद्र में मजबूत सत्ता पक्ष के समक्ष मजबूत विपक्ष हो तो सत्ता की लूट से बचा कर लोकतंत्र को मजबूती मिलती है। इसलिए विपक्ष में बहुत कुछ स्वतंत्र रूप से करने और मुद्दों को उठाने का अवसर होता है और जवाबदारी भी नही होती है।    पिछले कुछ वर्षो से देश की सबसे पुरानी पार्टी में कलह देखी जा रही है। अति महत्वाकांक्षी नेता अपनी निष्ठा ऐसे समय में बदल रहे हैं जब सबसे ज्यादा जरूरत है। पुराने नेता अपने आप को दरकिनार करते हुए महसूस करते ही भाग रहे हैं गोया सत्ता ही एक मात्र साध्य रहा है।  कुछ जनाधार विहीन और कुछ उम्रदराज नेता परिवर्तन में बाधक हैं और कुछ अवसरवादी दल बदल रहे हैं। कुछेक को दल बदलने के बाद इनाम भी मिल रहा है। कुछेक सवाल भी हैं ! 1. क्या पद और सत्ता में रहने वाले नेता अपने लिए ही राजनीति में आते हैं ? उनके लिए आधुनिक राजनीति के मूल आधार "जनमत" निर्माण महत्वपूर्ण नही है? 2. जब वो केवल सत्ता में बने रहना ही महत्वपूर्ण मानते हैं तो नेतृत्व क्षमता कब साबित करेंगे? 3. क्या पैसे, प्रचार तंत्र और जातिगत तथा भावनाओ के दोहन वाले असली नेता ...